Thursday, November 25, 2010

मैं और मेरा साहिल

कभी -कभी कुछ लम्हे यूँ दिल में उतर जाते हैं , जैसे साँसें रूह में
पूनम कि रात सागर के किनारे, जहाँ चाँद अपनी चांदनी को बाहों में लिए थे....
वहीँ सागर तड़पता, हुआ अपने साहिल से मिलने को बेचैन था
शाम को वो लम्हा था जो बेहद खूबसूरत और दीवाना बना देने वाला था...
दिल ने चाहा कि घंटों वहीँ साहिल के किनारे बैठ कुदरत कि इस सुन्दरता को
अपने दिल में अपने रोम -रोम में बसा लू ...!!!
ज़मीन भी अपने आसमान कि आगोश में गुम सुम कुछ कहना चाह रही हो...
लगा वो मुझे भी अपना राजदार बना रही हो...
इतने हसीन वक़्त मैं कैसे रोक पाती खुद को...
वहीँ मेरी उंगलिया ,रेत पर बैठे हुए कभी तेरा और कभी मेरा नाम लिख -लिख कर
तुझे याद करती रही , और हर बार वो मचली लहरें आती और हम दोनों को यू साथ ले जाती...
बस यादों के लिए वहीँ साहिल पर कुछ मोती और सीप छोड़ जाती

Sunday, November 7, 2010

ये चंद पंक्तियाँ में आज अपनी माँ को समर्पित करता हूँ
और उनके जन्मदिन पर शत -शत प्रणाम करता हूँ...

ए माँ तुझे मेरा शत-शत प्रणाम...
तू ही मेरी आस्था , तू ही मेरा प्राण
तेरे चरणों में सब कुछ कुर्बान...
धन दौलत, यश और आराम...!!!
तेरी छाया में मैंने पाया, नवजीवन का वरदान...
माँ तू शीतल जल कि धारा...
माँ तू पवन झकोरा...
कभी कोमल , तो कभी कठोर ए तेरा रूप निराला ..
लाड प्यार से पाला पोसा ..
सहनशीलता, मर्यादा, के गहनों से तूने मुझे सजाया...
दिया बल, बुद्धि , हौंसला मुझे ..इस दुनिया में मुझे चलना सिखाया...
झूट और सच के अंतर को तूने मेरे मन में बिठलाया...
दिया ज्ञान पाप पुण्य का , मुझको अपना धरम सिखलाया...
सब धर्मों में ऊचा धर्म ...इंसानियत का ..ए पाठ मुझए पढाया...
मेरी दुनिया में पहचान में तूने अपना हाथ दिखाया...
माँ तू मेरे दिल कि धड़कन. माँ तू मेरी मीठी मुस्कान...
आज जहाँ -जहाँ भी जाऊं , धन दौलत और यश से पहले
सबसे पहले माँ तुझे सलाम...
माँ तुझे सलाम...!!!!

Tuesday, November 2, 2010

ऐ ज़िन्दगी तुझे पा कर कर भी ...
ज़िन्दगी से हैरान , परेशां हूँ में...!!!
दुनिया कि चमक धमक में...मंजिलों को ढूँदती ...
कभी जाने तो कभी अनजाने में ...
दूसरों के अरमानो , दूसरों के खवाबों को रौंदती हुई ये ज़िन्दगी..!!!
अलग -अलग नजरिया है लोगों का...जीने का ज़िन्दगी...
कभी अपनों कि लाशों पे बनाती ये महलों कि ज़िन्दगी...
कभी दूसरों के कफ़न से खुद को सवारती और सजाती ये ज़िन्दगी....!!!
कभी अपनों के लिए ही घर से बेघर होती ..
टूटती और बिखरती ज़िन्दगी....
बस इक सौदा सा बन कर रह गयी ये ज़िनदगी...
एक हाथ दे और दूसरे हाथ ले ..बस यही रह गयी है ये ज़िन्दगी...!!!!

Tuesday, October 12, 2010

हुस्न..

बरसों बाद आज इक चेहरा हसीन देखा ..
मानो यूँ कि घटाओं में छिपा आफ़ताब देखा...!!!
अश्कों पे छिपे कुछ सवालों का ..
आज मुझए जवाब मिला...
उन काली लहराती जुल्फों से मुझए आज...
मचलती लहरों का अहसास मिला....!!!
वाकिफ थे हम भी उन आँखों कि गहरायी से....
ना जाने क्यूँ आज तेरी आँखों में डूब जाने को जी चाहा..!!!
सुना है तेरी इक मुस्कान पे थे हजारों फ़िदा....
हैरत हुई जब बागों में फूलों को खिलते और महकते देखा ...!!!
थी तपिश तेरे जिस्म में कुछ इस कद्र ...
कि हर बार तुझे देख में सुलगता रहा तड़पता रहा.!!!
हो रूबरू कभी बस..इसी आस पे कभी जीता रहा तो कभी मरता रहा...!!!

Sunday, August 29, 2010

बरसात

आज ना जाने क्यूँ हवाओं में वो बारिश कि बोछार का नया रंग नया सुरूर है...
खींच रहा हो मुझए , गुदगुदा रहा हो जैसे मुझे ...!!!
ना रोको हमे , आज हमे भी भीग जाने दो....
दिल में उमड़ते हुए इस तूफ़ान को मचल जाने दो...!!!
लगता है कुदरत भी मेहरबान है आज मुझपे ...
कह दो उसे मुझे भी अपनी पनाह में समां लेने दो...
नाच उठा ये मन मयूर मेरा , कह दो आज मुझे भी झूम लेने दो ...
बांध दो पायल मेरे भी पॉंव में , इस वीरान जंगल में मुझे भी मंगल मना लेने दो !!!
कितना खूबसूरत है कुदरत का ये अनोखा रूप , कि आज मुझे भी उसकी खूबसूरती को बटोर लेने दो...
इस पल में दो पल के लिए ही सही मुझे भी जी लेने दो...!!!

Friday, August 20, 2010

नशा

ये क्यूँ आज कल दिल बेक़रार रहता है॥??
बिन पिए आँखों में इक नशा खास रहता है..
ये नशा है या खुमार उसके इश्क का , जो सुबह शाम मुझए बेहाल करता है...
अब इस जालिम दुनिया को शिकायत होने लगी हम से .....
कि देखो अब ये इंसा दुनिया से जाने लगा है...!!!
मैं खुद भी वाकिफ नहीं कि अब मुझे ये क्या होने लगा है...??
उसका दर्द भी क्यूँ दुआ बन जाता है...
क्या कहूं कि अब ता उम्र इस दर्द मैं जीने का मज़ा आने लगा है...!!!

अकेले

अब तो नींद में भी जागने कि आदत सी हो गयी ...
इन बंद पलकों के पीछे किसी को देखने कि आदत सी हो गयी...!!!
क्यूँ ?? अब इस भरी दुनिया में अकेले रहने कि आदत सी हो गयी....
खुदा ! अब तो यही आलम है कि , अब खुद अपने आप से गुफ्तगू करने कि आदत सी हो गयी..!!!

Saturday, August 7, 2010

कौन हूँ मैं..??

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं॥??
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं ...
इक दोस्त है , थोडा कच्चा पक्का सा..!!!

एक झूट है आधा सच्चा सा...
जज़्बात के मन पे इक पर्दा सा
जो पास हो कर भी पास नहीं , पर उसे छुपा कोई राज़ नहीं...!!!
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं...???
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं , इक दोस्त है कच्चा पक्का सा...

मन का सीधा सादा सा , दोस्त इक भोला भला सा...
कहने को इक दीवाना सा , फिरता मारा -मारा सा
फिर भी जान से प्यारा सा
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं....तुम कह देना कोई ख़ास नहीं
इक दोस्त है कच्चा पक्का सा...!!!
बस एक अधूरा सपना सा , थोडा झूठा थोडा सच्चा सा...
सोचो तो इक पहेली सा...
कोई तुमसे पूछे कोंन हूँ मैं ..???तुम कह देना कोई ख़ास नहीं...
इक दोस्त है कच्चा पक्का सा...
इक दोस्त है कच्चा पक्का सा..!!!

Thursday, July 29, 2010

एक तेरा, एक मेरा

इक लफ्ज़ तुम चुनो...
इक लफ्ज़ हम चुने....
मिल जाये दोनों तो इक शब्द बनेगा...
यूँ ही इक-इक शब्द से , कुछ नया कुछ अनोखा...
कुछ तेरा कुछ मेरा रिश्तों का इक नया नया रंग मिलेगा

इक कदम तुम चलो...
इक कदम हम चले...
यूँ साथ चलोगे तो सफ़र , सफर रहेगा ...
आसन हो जाएँगी मंजिले, जब हमसफ़र हमदम तुम सा रहेगा

इक हाथ तुम बढाओ...
इक हाथ हम बढ़ाएं...
मिल जाएँ दोनों हाथ तो,
जीवन तनहा नहीं खुशहाल बनेगा

कुछ रंग तुम भरो...
कुछ रंग हम भरें...
मिल जाये जब सब रंग, तो इक नया इन्द्रधनुष सजेगा....
इक नया आकाश मिलेगा

इक मुस्कान तुम्हारी...
इक मुस्कान हमारी ...
हो मेहरबान खुदा तो ये महफ़िल मैं खुशनुमा माहोल बनेगा ...
दुनिया को इक नया पैगाम मिलेगा

Saturday, July 24, 2010

सुलगती दुनिया..

ये झूठे वादों ये झूठी कसमों कि दुनिया...
ये चेहरे पे लगे झूठे नकाबों कि दुनिया॥
ना तेरी ना मेरी , ये ज़ुल्मों से भरी फरेबों कि दुनिया ....
ना रिश्तों कि ना रस्मों कि रिवायतों कि दुनिया, बस दौलत
और दौलत के भूखों कि दुनिया॥
चोरहों पे बिकते भूखे जिस्मों कि दुनिया....
पल-पल सुलगती ये हैवानो कि दुनिया॥
एक दूजे के खून कि प्यासी ये दुनिया....
बाजारों में बिकते हुए दीन और ईमान कि दुनिया॥
अपने हाथों अपनों को नीलाम करती हुई ये दुनिया...
बेबस और मजबूर गरीबी में गरीबों पे हसती हुई ये दुनिया॥
अपने ही हाथों से अपनों के घर जलाती हुई ये दुनिया....
झूठे सपनो और झूठे ख्वाबों में , कभी हसती तो कभी रोती हुई ये दुनिया॥






Friday, July 23, 2010

ये वक़्त...

कभी थे जिनकी नज़रों के नूर...
कभी थे जिनके दिल के सरूर...
आज बन गए उनके दिल के शूल...!!!
जुबान खामोश , पर आँखें हजारों सवाल करती हैं॥
क्या करें कहाँ ले जाएँ उन्हें???
छिपाए फिरते हैं इन नम आँखों को...कभी..
ना देखे कोई इन छलकती हुई आँखों को, इस लिए खुद को अंधेरों में रखते हैं
था कभी इस रूह इस दिल इस जिस्म से प्यार हमे , पर आज खुद को मिटटी के समान समझते हैं...
ये तो है सब किस्मत का खेल, अब क्या कहें सितारे हर पल एक से नहीं रहते...
धूप और छावों का ये खेल, दुःख और सुख का ये मेल आएगा चला जायेगा
पर बीते हुए वो सुनहरे पल वो शन ना लौटेंगे कभी....
रह जायेंगे कुछ पल हमारी भी यादों के यहाँ..सिमट जायेगा हर लम्हा
फिर ना होगी कोई दुआ कबूल तेरी, देखो हम ना फिर लौटें गे , ना लौटें गे कभी॥!!

Thursday, July 22, 2010

ये खौफ..

ना जाने वक़्त का तूफ़ान कब जाये ..
इस सुन्दर सी बगिया को वो कब उड़ा ले जाए..
क्यूँ हैरान और परेशान रहता है ये दिल..
क्यूँ खुद से ही इतने सवाल करता है ये दिल
क्यूँ तनहाइयों से डरता है ये दिल
क्यूँ तुझ से दूर जाने को डरता है ये दिल
क्यूँ तेरा हाथ थाम के फिर छोड़ने को डरता है ये दिल...
क्यूँ इस भीड़ में अकेले चलने से डरता है ये दिल
क्यूँ अपनी नज़रों से ओझल होते हुए देख डरता है ये दिल
क्यूँ ख्वाबों में भी मिल कर बिछड़ ने से डरता है ये दिल
यही इक सवाल यही इक उलझन लिए चुप-चाप धडकता है ये दिल
शायद यही कहना चाहता है ये दिल कि तुझसे बेपनाह मोहब्बत करता है ये दिल..!!!

Sunday, May 16, 2010

ये पेड़ ...

मैं अपने ही घर मैं अजनबी सा बन गया हूँ...

कहीं अंधरों मैं खो सा गया हूँ, खुद से ही घबरा सा गया हूँ॥!!!
पतझड़ कि भांति , इक सूखा तना रह गया हूँ ...
गिर गए पते , टूट गयी हैं शाखाएं जिसकी ..बस इक बेजान सा खोल रह गया हूँ॥!!!

मैं अपने ही घर अजनबी सा बन गया हूँ..

देता था जो कभी घना साया , ठंडी हवा राहगीरों को..
आज खुद ही किसी कि छाया को तरसने लगा हूँ॥!!!

मैं अपने ही घर अजनबी सा बन गया हूँ...

कभी रहती थी इन शाखाओं पे कोयल , गूँज उठती थी...
उसकी मीठी कू -हू कू-हू कि बोली, बना देती थी कि माहोल खुशनुमा ...
आज वक़्त के साथ टूट गया हूँ , झुक सा गया हूँ

मैं अपने ही घर अजनबी सा बन गया हूँ

जहाँ बगिया मैं थी मेरी शान और बान....
आज वहीँ है दुनिया देख के हैरान
देखो काट डाला मुझे , मुझे मेरे ही घर (जमीन)
से निकल डाला मुझे , जला डाला मुझे॥!!!

मैं अपने ही घर मैं अजनबी सा बन गया हूँ

यही दस्तूर है दुनिया का...
रहे गर साँसें साथ तो साथ देती है दुनिया...
टूट जाये ये तार गर साँसों के तो भुला देती है ये दुनिया...!!!

इसी लिए कहता हूँ कि " मैं अपने ही घर मैं अजनबी सा बन गया हूँ"
खुद से घबरा सा गया हूँ..!!!