कभी थे जिनकी नज़रों के नूर...
कभी थे जिनके दिल के सरूर...
आज बन गए उनके दिल के शूल...!!!
जुबान खामोश , पर आँखें हजारों सवाल करती हैं॥
क्या करें कहाँ ले जाएँ उन्हें???
छिपाए फिरते हैं इन नम आँखों को...कभी..
ना देखे कोई इन छलकती हुई आँखों को, इस लिए खुद को अंधेरों में रखते हैं॥
था कभी इस रूह इस दिल इस जिस्म से प्यार हमे , पर आज खुद को मिटटी के समान समझते हैं...
ये तो है सब किस्मत का खेल, अब क्या कहें सितारे हर पल एक से नहीं रहते...
धूप और छावों का ये खेल, दुःख और सुख का ये मेल आएगा चला जायेगा॥
पर बीते हुए वो सुनहरे पल वो शन ना लौटेंगे कभी....
रह जायेंगे कुछ पल हमारी भी यादों के यहाँ..सिमट जायेगा हर लम्हा ॥
फिर ना होगी कोई दुआ कबूल तेरी, देखो हम ना फिर लौटें गे , ना लौटें गे कभी॥!!
3 comments:
nice piece....
u ve developed a great sense of articulation...!!
Thanks peeyush..:)
कभी थे जिनकी नज़रों के नूर...
एक सुन्दर सी रचना !!
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