Monday, November 16, 2009

एक नया अहसास नया रंग इस बेरंग दुनीया में छा गया , मानो जैसे इन्द्रधनुष समा गया...
कभी कभी ये महसूस होता है की मुझमें एक और आत्मा रहती है॥
जो मुझसे बढ़ कर उसको चाहती , उसकी इबादत और सजदा करती है...
मेरी साँसों से भी बढ़ कर उसकी उसकी साँसों को...
मेरे लभों की हँसी से ज्यादा उसकी वो दिलकश हँसी को...
मेरे दर्द से ज्यादा उसकी इक -इक आह को ..बेपनाह मोहब्बत करती है , उसका अहत्राम करती है...
मेरे जिस्म के एक -एक रोम में उसकी महक, उसकी गूँज सुनाई देती है...
आंखों में तस्वीर और भीगी पलकों में उसको पाने की ख्वाइश दिखाई देती है॥
देखो न इस दीवानगी की हद को की क्या कहें ...???
चाँद और तारो की तमन्ना करे कोई तो क्या करें???
सूरज की किरणों को कोई छूना चाहे तो क्या करें???
आंधी और तूफ़ान को इस चमकती हुई बिजलियों को अपनी बाहों में भरना चाहे तो कोई क्या करें ???
इन मचलती हुई लहरों को थमने को कोई कहे तो कोई क्या करें???
जानतें हैं की ये मुमकिन नही , ये दिल भी तो नादान , मासूम है, ये समझये ही नही तो हम क्या करें????