Friday, November 1, 2013

Umeed

हों कितनी भी  निराशा कितने भी गम कहीं जीने की उम्मीद आज भी  बाकी है
राहे हों कितनी भी कठिन इन पैरों में  जान आज भी बाकी है.……  

ना घबरा ए दिल नफरतों को देख कर शायद कहीं
ये मोहब्बत ये सुकून आज भी बाकी है… 

चाहे घोर अँधेरा हो ज़िन्दगी के सफ़र  में
 मानो या न मानो इक रौशनी आज भी बाकी है… 

बुझ गए हों चाहे लाख दिए  तेरी उमीदों के
कहीं ना कहीं उमीदों  कि लौ आज भी बाकी है.…

वक़्त का तकाज़ा है हर दिन इक सा नहीं होता
कहीं धुप तो कहीं साया इक साथ नहीं होता … 

 चाहे हो  न हो हर दुआ में असर
फिर भी हर दिल में वो विश्वास वो इबादत  बाकी है…

होते नहीं हर खवाब पूरे इस दुनिया  फिर भी
इन आखों में  बसी ये खूबसरत तस्वीर आज भी बाकी है.… 

जहाँ पतझड़ है वही मुझे बहार कि भी उम्मीद बाकी है
सच कहा है किसी ने की उम्मीद पर दुनिया आज भी ज़िंदा है

हर सफ़र में हार के साथ - साथ जीत की उम्मीद भी बाकी है.…।