Saturday, December 26, 2009

Mrigtrishna..

Dekho na ..ye dil bhi masoom kya jaane ...

ye sagar ki lehron se takrana chahta hai.
uski gehraayon main doob kar dekhna chahta hai..

aasman se taaron ko tor kar dekhna chahta hai..
dekhta hai jab ye manmohak indradhanush ko..
to uske rangon main khud ko bhigo lena chata hai..

baresti hui baadlon ki moti si boondon ko apne ..
aanchal main saja lena chahta hai..

phoolon ki khusboo se mast ho jana chahta hai..
banwaron ke raag main khud bhi gungunana chahta hai..

koi to samjhye is ziddi dil ko..
ki ye khudrat ki anmol sundarta ..aur anmol tohfa hai ..bas iska ahsas hi kafi hai..
ye to ik ..'MRIGTRISHNA" si hai jo dikhti to hai par milti nahi...!!!

Mere abbu..

Ye kavita meri dost ke abbu ke naam...


Sab ki aankon ke taare ..
har dil ke pyare mere abbu..!!!

haste the hasaate the har gum ko yun hi ..
pal bhar main bhula dete the mere abbu..!!!

na koi shikan na fikr maathe pe..
dhuyen main udha dete the har dard mere abbu.!!!

dekhte hi dekhte subha se shaam dhali..
waqt guzra , guzre waqt ke saath aaj dhal gaye mere abbu..!!!

ek dard aur pareshani main aaj kho gayi ..
wo chehre ki rounak aur meethi baatein jo dete the kabhi mere abbu...!!!

ghir aaye wo kale badal jindagi ke safar main...
reh gaye jindagi se ladte , jhoojhte hue akele aaj mere abbu..!!!

bheeg rahi thi palkein, ro rahe the deewaro der ...
par khamosh bebas pade kuch kehna chah rahe the aaj mere abbu...!!!

khade the hazaron hath duaon aur sajdon ke liye..
par lout aati thi har dua khali aaj kyun mere abbu ke liye..???

jo bachpan main sulate the kabhi..
lori dekar aaj khud hamesha ke liye so gaye kyun mere abbu..!!!

aaj apno ki bheed ne apno ko rukhsat kiya..
de gaye aaj dhokha hum sab ko mere abbu..!!!

reh gayi khuch yaadein, ghar ki deewron der par...
goonjti hain aawaazien lagta hai jaise pukar rahe ho aaj mere abbu..!!!

ho naseeb jannat, milye sukoon tumhe mere abbu..
yahi aakhri dua aaj meri kubool ho jaye ..Aameen ho jaaye..!!!


Monday, November 16, 2009

एक नया अहसास नया रंग इस बेरंग दुनीया में छा गया , मानो जैसे इन्द्रधनुष समा गया...
कभी कभी ये महसूस होता है की मुझमें एक और आत्मा रहती है॥
जो मुझसे बढ़ कर उसको चाहती , उसकी इबादत और सजदा करती है...
मेरी साँसों से भी बढ़ कर उसकी उसकी साँसों को...
मेरे लभों की हँसी से ज्यादा उसकी वो दिलकश हँसी को...
मेरे दर्द से ज्यादा उसकी इक -इक आह को ..बेपनाह मोहब्बत करती है , उसका अहत्राम करती है...
मेरे जिस्म के एक -एक रोम में उसकी महक, उसकी गूँज सुनाई देती है...
आंखों में तस्वीर और भीगी पलकों में उसको पाने की ख्वाइश दिखाई देती है॥
देखो न इस दीवानगी की हद को की क्या कहें ...???
चाँद और तारो की तमन्ना करे कोई तो क्या करें???
सूरज की किरणों को कोई छूना चाहे तो क्या करें???
आंधी और तूफ़ान को इस चमकती हुई बिजलियों को अपनी बाहों में भरना चाहे तो कोई क्या करें ???
इन मचलती हुई लहरों को थमने को कोई कहे तो कोई क्या करें???
जानतें हैं की ये मुमकिन नही , ये दिल भी तो नादान , मासूम है, ये समझये ही नही तो हम क्या करें????

Friday, October 23, 2009

बचपन

आज फिर मुझे वो मेरा बचपन याद आया॥
वो अपने आँगन में बीता हुआ हर लम्हा याद आया !!!
वो माँ का पुकारना ..वो हमारे पीछे -पीछे भागना
घर का वो चोबारा , आज फिर याद आया...
अपनों के बीच में वो हसना वो रोना॥!!!
वो रूठना वो मनाना आज फिर याद आया॥
बारिश में वो मिटटी में खेलना ,वो भीगना और भीगाना...
और फिर माँ का वो डांटना याद आया!!!
माँ के हाथों कि बनी उसकी वो रूखी रोटी में
भरा हुआ प्यार आज बोहत याद आया !!!
रात -रात भर जागना , मेरे दर्द को अपने सीने से लगाना ॥
आंखों के आंसुओं को छुपा लेना ..क्यूँ आज बोहत याद आया।!!!
ना जाने कहाँ खो गए वो सुनहरे दिन ,वो पल॥
आज फिर दिल को वो दोस्तों का प्यार ॥
और उनका झगड़ना याद आया ...
वोह पिता का प्यार, माँ का दुलारकभी मीठा तो कभी खट्टा...
जिन्दगी का ये बीता वक्त फिर आज बोहत याद आया ॥
उनका प्यार भरा हाथ अपने सर पर आज फिर बोहत याद आया!!!

Wednesday, October 21, 2009

Khawab main bhi kisi ko na sataen hum, bhule se bhi kisi ka bura na chahyen hum..fitrat hi kuch aise hai humari ki koi tadpe to saath tadpte hain hum...!!!ye kaisa dard , ye kaise rishta bana hai insaan se humara..??? ki uski khushi main humari khushi aur uske har gum main hamara gum zhalkta hai..ye dil khud se poochta hai kai baar ..ki kya milta hai tujye in ansuon main?? kyun tu bhi rota hai ,subkta hai har dum...kyun tu bhi pareshan aur bechain rehta hai...??? to kehta hai.."ki rista sirf khoon ka nahi mere aansouon ka bhi hai mujh se.."ek yahi to hain jo har pal har lamha mere kareeb rahte hain..jab hum tanhaion main rehte hain..jab sab humye akele chod jate hain..tab yahi mujjhye apne hone ka ashsaas dilate hain...tumhye akele chodna hume pasand nahi kehte hain kai baar humye...to kehte hain hum unhye kai baar ki na aaya karo yun bin bulaye in aankon main..ye bhi ik roz tumhye chod chale jayengi kisi aur ki ho jayen gi..

Tuesday, September 1, 2009

वो सिसकियाँ...

एक रोज़ यूँ ही टहलते -टहलते जाने कोई धीमी-धीमी सी , सुबकती हुई एक आवाज़ जो दिल को चीर कर दिल के उस पार उतर जाए सुन रही थी...देखा तो वही बाग़ में हजारों फूल मुस्कुरा रहे थे, अपनी मीठी -मीठी सी सुघंद
से सब का मन बहला रहे थे..अक्सर सुबह का ये मंज़र हर दिल को लुभाने वाला था, चारों और हवा के झोंकों से मानो कोई भी अपने आप पर काबू पा रहा था, लगता था जैसे सभी इस का आनंद ले रहे हो और कह रहे हो की हम को भी अपने साथ यूँ ही ले चलो...दूर कहीं दूर इस बेदर्द और बेबस दुनिया से ...
पर मेरा धयान तो मुझए कहीं और ही ले जा रहा था , उस आवाज़ में एक दर्द और एक बेबसी सी झलक रही थी...
ख़ुद पर काबू करना अब मेरे बस में नही था, कदम उस ओर ख़ुद बा ख़ुद चले जा रहे थे...
मानो जैसे कोई दब्बे पाँव हमको पुकार रहा हो....
इतने ठंडे ओर हसीं मौसम में जो मैंने देखा तो दिल कांप उठा , रूह तड़पने लगी मानो ये शरीर भी ठंडा हो गया हो जैसे, ऐसा दृश्ये पहले कभी नही देखा था, फूलों के उस झुंड में मैंने एक मासूम ओर पाक खुदा के फरिस्ते को देखा मानो जैसे खुदा मेरे रु-बा-रु खड़ा हो ओर बाहें फेलाए मुझए अपनी ओर बुला रहा हो...
एक पल के लिए मेरी आँखें शर्म से झुक गई, आंखों ने भी मुझसे वफ़ा की ओर झर-झर आंसू बहने लगे...
एक सफ़ेद चादर में लिपटी हुई, एक मासूम नवजात बच्ची (लड़की) को देखा ,
मुझए देख कर जैसे वो अपना रोना भूल गई हो , उसे गोद में उठाते ही मुझए ऐसा लगा मानो जैसे मुझए अपनी मुस्कान दिखा कर इस नन्ही सी जान के लिए शुक्रिया कहना चाह रही हो..लगा जैस कोई फूल अपनी खुसबू से मुझए अपनी ओर खींच रहा हो, झट से मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया ऐसा लगा जैसे की जन्नत में हूँ मैं.. पर ये घड़ी बहुत ही शर्मनाक थी , उनके लिए जिन्होंने ने उस बच्ची को जन्म दे कर फेंक दिया ...क्या ये कुदरत का वो अनमोल थोह्फा नही????क्या यही हमारा समाज है???जिस के जन्म पर आज भी अफ़सोस ओर मातम मनाया जाता है...उसे बोझ समझा जाता है..क्या वह लोग अपनी माँ,बहन से प्यार नही करते ???अगर हाँ तो फिर ये बेटी होने पर ये सवाल क्यूँ????? ये शर्म ओर ये फर्क क्यूँ????क्यूँ ??

Saturday, August 29, 2009

बारिश..

इस रिम-झिम ..रिम-झिम बारिश का भी आज कुछ नया ही अंदाज़ है॥
उसकी एक -एक बूँद में वो उसका (ईशवर )छलकता प्यार और दीवानापन सा दिख रहा हो जैसे...
लगा जैसे बूंदे इस धरती को पाने के लिए बरसों से तड़प रही हो ...
काले- काले बादल भी मद मस्त खुशी से झूम रहे हो जैसे...
हवाओ में वो इक नमी ,वो इक मिटटी की सोंधी -सोंधी खुशबू जिससे मनमयूर नाच रहा हो जैसे...
चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली पेड़ और पते जैसे सब खुशी से झूम रहे हों...
पतियाँ तो जैसे थरथराते होंटों की तरह काँप रही हों और शर्म से ख़ुद बा ख़ुद झुक जा रही हो
और लगा जैसे आज खुदा बहुत मेहरबान हो गया हो जैसे...
पंछियों की कलरव ,नदियों का वो शीतल सर -सर बहता पानी भी जैसे खुशियों की लहर जगा देता हो जैसे..
लगता है कभी -कभी की जैसे आसमान अपनी बाहे फलाये बुला रहा हो॥
इतना विशाल की चाहे तो पूरी कायनात को अपनी आगोश में समां ले
कुदरत है ही इतनी सुंदर की मेरी इन चंद पंक्तियों में बयां करना मुमकिन नही नामुमकिन हो जैसे....

Thursday, August 20, 2009

इश्क..

इश्क कोई चीज़ नही जिसे सोने या चांदी से तोला जाए
इश्क या मोहब्बत खुदा का वो अनमोल तोहफा है हर इन्सान के लिए
जो दिलो में कई जज़्बात जगाता है...जो इस हकीकत को समझ जाए बस वही खुदा का बासिंदा है॥
इश्क तो इबाबत है पूजा है उसकी (खुदा ) जो चाहे ले जाए उसे , जो चाहे वो बदनसीब क्या जाने क्या
ठुकराया है उसने और क्या पाया है उसने
किस्मत वाले हैं वो जिन्हें मिलती है "मोहब्बत" जीते जी तो "जन्नत" नसीब होती है,
मिले जिन्हें तो "दोज़क"
अब जी ले ये चन्द घडियां और दे मेशुमार प्यार .. जाने फिर किस मोड़ पर हो वापसी हमारी,जी चाहता है की
बटोर लें जितना प्यार हो सके , कहीं ये रुसवाई मेरे खुदा को मुझसे रुसवा कर दे, हां क्यूँ की उस के दर पर दौलत महल
चोबारे जायेंगे ..बस जाए गी तो ये मोह्बात ये इंसानियत बस तू इतना जान ले...खुदा हाफिज़..

बंदगी..

लम्हा-लम्हा जिसे तसावुर में याद करतें हैं॥
लम्हा -लम्हा जिसे साँसों में ,दिल की धडकनों में महसूस करते हैं॥
पूछते हैं हम आज खुदा से की क्या हम को भी वो याद करते हैं???
प्यार से सही कम से कम नफरत से ही सही...
जिसकी सुबह तुम्हारे साथ जिसकी शाम तुम्हारे साथ गुजरती हो जिसकी खुशिया तुम्हारे दम से हों..
जिसके आंसू तुम्हे देख हर गम भुला देते हों..क्या है ऐसा जो असर छोड़ जाते हो??
अक्सर सोचती हूँ की ये ख्वाब है या हकीकत .....
तेरी चाहत मेरे नसीब में है या नही...नही जानती..
पर मेरी चाहत में कोई कमी नही...भुला बैठे है जिसकी चाहत में ख़ुद को ..बस
खुदा इतना कर्म फरमाए की वो जिसे
भी चाहे उसे उसकी "मोहब्बत "बना दे
रुसवा हो वो कभी मेरी बलाए भी उसे लगा दे॥
मिले हर खुशी उसे उसकी हर नफरत मुझे दे दे
उसकी राहों के हर कांटे मेरी राहों में और फूल उसकी राहों में बिछा दे
कभी रुसवाई मिले उसे ये दुआ तू उसे दे दे॥
अब क्या माँगू तुझ से बस तुझ को मांग कर..हो जाए ये जहाँ रोशन बस, तेरी बंदगी करके..और ये मेरी ये दुआकुबूल हो जाए....आमीन हो जाए..

Monday, August 10, 2009

खुशी..

खुशी वो जो दूसरो को खुशियाँ दे जाए..
खुशी वो जो हर दिल में जीने की तमना जगा जाए॥
खुशी वो जो बेचैन दिलो को सुकून दे जाए ..
खुशी वो जो हर दिल में नफरत को छोड़ प्यार जगा जाए
खुशी वो जो तेरी जुदाई में तेरे पास होने का अहसास करा जाए..
खुशी वो जो दो बिछडे हुए दिलों को मिला दे..
खुशी वो जो किसी भटके हुए राही को उसकी मंजिल दिखा दे..
खुशी वो जो हर दिल में एक सब्र एक खुदा नाम जगा जाए...
खुशी वो जो मेरे रब्ब से तेरे रब्ब को मिला दे ..मेरी रूह से तेरी रूह को मिला दे॥
आमीन..

Tuesday, August 4, 2009

दोस्ती....

तुम्हारी दोस्ती की तारीफ मेरी जुबान पे आने लगी हर वक्त ....
तुमसे दोस्ती क्या हुई की ज़िन्दगी मुस्कुराने और महकने लगी हर वक्त

अब तो नींद में भी जागने की आदत सी हो गई हर वक्त ...
इन बंद पलकों के पीछे किसी को देखने की आदत से हो गई ..हर वक्त॥

कोई बताये मुह्ये की.
.क्यूँ अब इस भरी दुनिया में तनहा रहने की आदत से हो गई
सच बताओ की ये मेरी दोस्ती है या तारीफ तुम्हारी.. की हर जुबान पे
...दुआ तेरे लिए आने लगी हर वक्त॥

खुदा!!! अब तो ये आलम है की अब ख़ुद अपने आप से गुफ्तगू करने की आदत से होगी हर वक्त...

Sunday, August 2, 2009

एक पल ..

एक पल को उसे तू मेरा बना दे..
एक पल को तू उसे मेरा बना दे .. खुदा॥!!
एक पल को तू उसे मेरे रूबरू कर दे॥
जिस एक पल के लिए बेचैन है मेरी रूह॥
इस हर पल हर लम्हा का अहसास तू उसे दिला दे.. खुदा॥
पल -पल तरसती
हैं ये ऑंखें जिस के लिए .. खुदा॥
इन आंखों को उसका दीदार करा दे॥
इन साँसों पर अब मुझए ऐतबार नही खुदा॥
मेरी इस आखरी खवाइश को पूरा करा दे॥
बस इस रूह को उस रूह से मिला दे॥
यही दुआ है मेरी तू इसे कुबूल करा दे॥
आमीन..!!!!

Saturday, August 1, 2009

चाँद..

रात के इस हसीं सफर में कोई और नही तुम मेरे हमसफ़र थे
सो गया था सारा जहाँ पर हम जागते थे यहाँ
किसी की मीठी यादों में किसी की तनहाइयों में....

देखते बैठे थे चाँद को अपने बादल से अठखेलियाँ करते हुए
थोड़ा हँसते हुए और कभी मंद ही मंद मुस्कुराते हुए
एक प्यार भरी आँख मिचोली खेलते हुए
कभी चुपके-चुपके एक दूसरे को बाँहों में भरते हुए
उन्हये देख ख़ुद ही मन ही मन मुस्कुरा लेती थी
तुम्हे चाँद और ख़ुद को बादल समझ लेती थी...

Saturday, June 27, 2009

Armanno ka aur khawaiyson ka silsila..
na kabhi khatam hua aur na kabhi hoga..
kabhi ye gila aapse to kabhi ye gila humse hoga..
jaante hain khoob ki hum bhi ek insaan hain..
ye shikwa aur shikayat hum se nahi to kya kuda se hoga...????
ye soch kar ki main khuda nahi, ek insaan hoon mujh main bhi..
ek masoom dil rehta hai...kya tujhye uss dard-e- dil ka ehsaas hota hai..????
usska dard, uss ka gum kya kya tujhye wo aansoo aur wo tadap deta hai...???


Sunday, June 7, 2009

Paheli..

Ye zindagi bhi ik paheli si hai...
kabhi hassati to kabhi rulati hai...
kya ajeeb sa khel rachati hai..
chand ke jaise aankh micholi khelti hai..
kabhi baadlon se dekh kar hasti hai to kabhi yahi...
baadlon main chup kar rulati hai..
kabhi andhera to kabhi ujjala deti hai...

Jindagi ko dekha hai bohat kareeb se maine..
aur yahi zindagi ko maine hamesha ke liye ..
ojhal hote huye bhi dekha hai..
kabhi yahi loo ke thapede aur kabhi ..
thandi hawa ke jhonke deti hai...

Kabhi yahi zindagi khushi ke aansu..
to kabhi yahi zindagi gum aur virha ke aanu deti hai...
door se dekho to bohat khoobsoorat aur haseen dikhti hai ...
paas se dekho to kaanto ke sej dikhti hai..
khuda ne bheja hai humhye ik zindagi jeene ko ..
jis main khushi, gum, gile, shikwe, pyar, mohabbat,nafrat..
aur na jaane kya kya..rangon se bhari hai ye zindagi???

Par issi zindagi main kabhi -kabhi kuch khaas log mil jaate hain..
jinhye dekh kar zindagi ka har dard khushi main badal jaata hai..
abb khuda se mujhye koi shikayat nahi..
ye zindagi tu jaise bhi hai..mujhye tujh se MOHABBAT hai..
bas ik yahi dua maangti hoon ki meri iss zindagi se kisi ko
shikayat na ho..agar ho to bas thoda pyar aur sirf pyar ho...aameen.

Sunday, May 24, 2009

Dua...

Khuda se eh -le -dil maangte hain ..
subha shaam unn ki khariyat mangte hain..
lag jaaye humari bhi umr unhe ,ye dua hum..
roz maangte hain...

Tum door raho ya paas ab itna jaan liziye..
dil to kayal ho gaya ab aap maaniye ya na maaniye..

le jao humye bhi apne kareeb..
ye dil chahta hai ek baar hi sahi..
teri dhadkano ko sunna chahta hai..
tere zism ki khushboo ko apne andar sama lena chahta hai...

Ek kasish hai tujhmain jo mujhye teri aur le jati hai..
ye kya hua hai humye ??? khud bhi bekhabar hain ..
shayad tabhi aayina bhi hum se sharmata hai..
humye dekh kar khud ba khud muskurata hai,
meri in nasheeli aankon ko wo khoob samjhta hai,
tabhi to in mad bhari aankon main, khud bhi doob jata hai...

Ab aa bhi jao ki waqt jaise thahar gaya ho..
aur ye palkein tumhare intazar main jaise ...
khud ko bhool gaye ho..

Ab itna karm farmaiye ki jald se jald khud ko mere kareeb le aaiye..
Ab sabr ki intaha ho gaye , ki tumhye ru-baru dekhne ki chah aur bhad gayi...
maangte hain duayein khuda se ki wo din aaye ki chhoo kar dekhun tumhye,
usska ehsaas karoon, aur rakh loo tumhye apne dil main sada ke liye...