Saturday, August 29, 2009

बारिश..

इस रिम-झिम ..रिम-झिम बारिश का भी आज कुछ नया ही अंदाज़ है॥
उसकी एक -एक बूँद में वो उसका (ईशवर )छलकता प्यार और दीवानापन सा दिख रहा हो जैसे...
लगा जैसे बूंदे इस धरती को पाने के लिए बरसों से तड़प रही हो ...
काले- काले बादल भी मद मस्त खुशी से झूम रहे हो जैसे...
हवाओ में वो इक नमी ,वो इक मिटटी की सोंधी -सोंधी खुशबू जिससे मनमयूर नाच रहा हो जैसे...
चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली पेड़ और पते जैसे सब खुशी से झूम रहे हों...
पतियाँ तो जैसे थरथराते होंटों की तरह काँप रही हों और शर्म से ख़ुद बा ख़ुद झुक जा रही हो
और लगा जैसे आज खुदा बहुत मेहरबान हो गया हो जैसे...
पंछियों की कलरव ,नदियों का वो शीतल सर -सर बहता पानी भी जैसे खुशियों की लहर जगा देता हो जैसे..
लगता है कभी -कभी की जैसे आसमान अपनी बाहे फलाये बुला रहा हो॥
इतना विशाल की चाहे तो पूरी कायनात को अपनी आगोश में समां ले
कुदरत है ही इतनी सुंदर की मेरी इन चंद पंक्तियों में बयां करना मुमकिन नही नामुमकिन हो जैसे....

Thursday, August 20, 2009

इश्क..

इश्क कोई चीज़ नही जिसे सोने या चांदी से तोला जाए
इश्क या मोहब्बत खुदा का वो अनमोल तोहफा है हर इन्सान के लिए
जो दिलो में कई जज़्बात जगाता है...जो इस हकीकत को समझ जाए बस वही खुदा का बासिंदा है॥
इश्क तो इबाबत है पूजा है उसकी (खुदा ) जो चाहे ले जाए उसे , जो चाहे वो बदनसीब क्या जाने क्या
ठुकराया है उसने और क्या पाया है उसने
किस्मत वाले हैं वो जिन्हें मिलती है "मोहब्बत" जीते जी तो "जन्नत" नसीब होती है,
मिले जिन्हें तो "दोज़क"
अब जी ले ये चन्द घडियां और दे मेशुमार प्यार .. जाने फिर किस मोड़ पर हो वापसी हमारी,जी चाहता है की
बटोर लें जितना प्यार हो सके , कहीं ये रुसवाई मेरे खुदा को मुझसे रुसवा कर दे, हां क्यूँ की उस के दर पर दौलत महल
चोबारे जायेंगे ..बस जाए गी तो ये मोह्बात ये इंसानियत बस तू इतना जान ले...खुदा हाफिज़..

बंदगी..

लम्हा-लम्हा जिसे तसावुर में याद करतें हैं॥
लम्हा -लम्हा जिसे साँसों में ,दिल की धडकनों में महसूस करते हैं॥
पूछते हैं हम आज खुदा से की क्या हम को भी वो याद करते हैं???
प्यार से सही कम से कम नफरत से ही सही...
जिसकी सुबह तुम्हारे साथ जिसकी शाम तुम्हारे साथ गुजरती हो जिसकी खुशिया तुम्हारे दम से हों..
जिसके आंसू तुम्हे देख हर गम भुला देते हों..क्या है ऐसा जो असर छोड़ जाते हो??
अक्सर सोचती हूँ की ये ख्वाब है या हकीकत .....
तेरी चाहत मेरे नसीब में है या नही...नही जानती..
पर मेरी चाहत में कोई कमी नही...भुला बैठे है जिसकी चाहत में ख़ुद को ..बस
खुदा इतना कर्म फरमाए की वो जिसे
भी चाहे उसे उसकी "मोहब्बत "बना दे
रुसवा हो वो कभी मेरी बलाए भी उसे लगा दे॥
मिले हर खुशी उसे उसकी हर नफरत मुझे दे दे
उसकी राहों के हर कांटे मेरी राहों में और फूल उसकी राहों में बिछा दे
कभी रुसवाई मिले उसे ये दुआ तू उसे दे दे॥
अब क्या माँगू तुझ से बस तुझ को मांग कर..हो जाए ये जहाँ रोशन बस, तेरी बंदगी करके..और ये मेरी ये दुआकुबूल हो जाए....आमीन हो जाए..

Monday, August 10, 2009

खुशी..

खुशी वो जो दूसरो को खुशियाँ दे जाए..
खुशी वो जो हर दिल में जीने की तमना जगा जाए॥
खुशी वो जो बेचैन दिलो को सुकून दे जाए ..
खुशी वो जो हर दिल में नफरत को छोड़ प्यार जगा जाए
खुशी वो जो तेरी जुदाई में तेरे पास होने का अहसास करा जाए..
खुशी वो जो दो बिछडे हुए दिलों को मिला दे..
खुशी वो जो किसी भटके हुए राही को उसकी मंजिल दिखा दे..
खुशी वो जो हर दिल में एक सब्र एक खुदा नाम जगा जाए...
खुशी वो जो मेरे रब्ब से तेरे रब्ब को मिला दे ..मेरी रूह से तेरी रूह को मिला दे॥
आमीन..

Tuesday, August 4, 2009

दोस्ती....

तुम्हारी दोस्ती की तारीफ मेरी जुबान पे आने लगी हर वक्त ....
तुमसे दोस्ती क्या हुई की ज़िन्दगी मुस्कुराने और महकने लगी हर वक्त

अब तो नींद में भी जागने की आदत सी हो गई हर वक्त ...
इन बंद पलकों के पीछे किसी को देखने की आदत से हो गई ..हर वक्त॥

कोई बताये मुह्ये की.
.क्यूँ अब इस भरी दुनिया में तनहा रहने की आदत से हो गई
सच बताओ की ये मेरी दोस्ती है या तारीफ तुम्हारी.. की हर जुबान पे
...दुआ तेरे लिए आने लगी हर वक्त॥

खुदा!!! अब तो ये आलम है की अब ख़ुद अपने आप से गुफ्तगू करने की आदत से होगी हर वक्त...

Sunday, August 2, 2009

एक पल ..

एक पल को उसे तू मेरा बना दे..
एक पल को तू उसे मेरा बना दे .. खुदा॥!!
एक पल को तू उसे मेरे रूबरू कर दे॥
जिस एक पल के लिए बेचैन है मेरी रूह॥
इस हर पल हर लम्हा का अहसास तू उसे दिला दे.. खुदा॥
पल -पल तरसती
हैं ये ऑंखें जिस के लिए .. खुदा॥
इन आंखों को उसका दीदार करा दे॥
इन साँसों पर अब मुझए ऐतबार नही खुदा॥
मेरी इस आखरी खवाइश को पूरा करा दे॥
बस इस रूह को उस रूह से मिला दे॥
यही दुआ है मेरी तू इसे कुबूल करा दे॥
आमीन..!!!!

Saturday, August 1, 2009

चाँद..

रात के इस हसीं सफर में कोई और नही तुम मेरे हमसफ़र थे
सो गया था सारा जहाँ पर हम जागते थे यहाँ
किसी की मीठी यादों में किसी की तनहाइयों में....

देखते बैठे थे चाँद को अपने बादल से अठखेलियाँ करते हुए
थोड़ा हँसते हुए और कभी मंद ही मंद मुस्कुराते हुए
एक प्यार भरी आँख मिचोली खेलते हुए
कभी चुपके-चुपके एक दूसरे को बाँहों में भरते हुए
उन्हये देख ख़ुद ही मन ही मन मुस्कुरा लेती थी
तुम्हे चाँद और ख़ुद को बादल समझ लेती थी...