रात के इस हसीं सफर में कोई और नही तुम मेरे हमसफ़र थे
सो गया था सारा जहाँ पर हम जागते थे यहाँ
किसी की मीठी यादों में किसी की तनहाइयों में....
देखते बैठे थे चाँद को अपने बादल से अठखेलियाँ करते हुए
थोड़ा हँसते हुए और कभी मंद ही मंद मुस्कुराते हुए
एक प्यार भरी आँख मिचोली खेलते हुए
कभी चुपके-चुपके एक दूसरे को बाँहों में भरते हुए
उन्हये देख ख़ुद ही मन ही मन मुस्कुरा लेती थी
तुम्हे चाँद और ख़ुद को बादल समझ लेती थी...
3 comments:
acchi lines hain ...feelings ke saath...!!
Wow.....this is really good....lines were simple...I understood them :-) Most importantly....you explored different territory this time....Very innocent and romantic!
Good read... Nice and romantic
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