Thursday, August 20, 2009

बंदगी..

लम्हा-लम्हा जिसे तसावुर में याद करतें हैं॥
लम्हा -लम्हा जिसे साँसों में ,दिल की धडकनों में महसूस करते हैं॥
पूछते हैं हम आज खुदा से की क्या हम को भी वो याद करते हैं???
प्यार से सही कम से कम नफरत से ही सही...
जिसकी सुबह तुम्हारे साथ जिसकी शाम तुम्हारे साथ गुजरती हो जिसकी खुशिया तुम्हारे दम से हों..
जिसके आंसू तुम्हे देख हर गम भुला देते हों..क्या है ऐसा जो असर छोड़ जाते हो??
अक्सर सोचती हूँ की ये ख्वाब है या हकीकत .....
तेरी चाहत मेरे नसीब में है या नही...नही जानती..
पर मेरी चाहत में कोई कमी नही...भुला बैठे है जिसकी चाहत में ख़ुद को ..बस
खुदा इतना कर्म फरमाए की वो जिसे
भी चाहे उसे उसकी "मोहब्बत "बना दे
रुसवा हो वो कभी मेरी बलाए भी उसे लगा दे॥
मिले हर खुशी उसे उसकी हर नफरत मुझे दे दे
उसकी राहों के हर कांटे मेरी राहों में और फूल उसकी राहों में बिछा दे
कभी रुसवाई मिले उसे ये दुआ तू उसे दे दे॥
अब क्या माँगू तुझ से बस तुझ को मांग कर..हो जाए ये जहाँ रोशन बस, तेरी बंदगी करके..और ये मेरी ये दुआकुबूल हो जाए....आमीन हो जाए..

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