इस रिम-झिम ..रिम-झिम बारिश का भी आज कुछ नया ही अंदाज़ है॥
उसकी एक -एक बूँद में वो उसका (ईशवर )छलकता प्यार और दीवानापन सा दिख रहा हो जैसे...
लगा जैसे बूंदे इस धरती को पाने के लिए बरसों से तड़प रही हो ...
काले- काले बादल भी मद मस्त खुशी से झूम रहे हो जैसे...
हवाओ में वो इक नमी ,वो इक मिटटी की सोंधी -सोंधी खुशबू जिससे मनमयूर नाच रहा हो जैसे...
चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली पेड़ और पते जैसे सब खुशी से झूम रहे हों...
पतियाँ तो जैसे थरथराते होंटों की तरह काँप रही हों और शर्म से ख़ुद बा ख़ुद झुक जा रही हो
और लगा जैसे आज खुदा बहुत मेहरबान हो गया हो जैसे...
पंछियों की कलरव ,नदियों का वो शीतल सर -सर बहता पानी भी जैसे खुशियों की लहर जगा देता हो जैसे..
लगता है कभी -कभी की जैसे आसमान अपनी बाहे फलाये बुला रहा हो॥
इतना विशाल की चाहे तो पूरी कायनात को अपनी आगोश में समां ले
कुदरत है ही इतनी सुंदर की मेरी इन चंद पंक्तियों में बयां करना मुमकिन नही नामुमकिन हो जैसे....
4 comments:
acchi lines hain.... so nice articulation...!!
mani bahuth accha hai poem..keep it up
mani ji bohat acha hay
mani ji kaha hay aaj kal likh nahi rahe aap
farhan
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