Thursday, July 29, 2010

एक तेरा, एक मेरा

इक लफ्ज़ तुम चुनो...
इक लफ्ज़ हम चुने....
मिल जाये दोनों तो इक शब्द बनेगा...
यूँ ही इक-इक शब्द से , कुछ नया कुछ अनोखा...
कुछ तेरा कुछ मेरा रिश्तों का इक नया नया रंग मिलेगा

इक कदम तुम चलो...
इक कदम हम चले...
यूँ साथ चलोगे तो सफ़र , सफर रहेगा ...
आसन हो जाएँगी मंजिले, जब हमसफ़र हमदम तुम सा रहेगा

इक हाथ तुम बढाओ...
इक हाथ हम बढ़ाएं...
मिल जाएँ दोनों हाथ तो,
जीवन तनहा नहीं खुशहाल बनेगा

कुछ रंग तुम भरो...
कुछ रंग हम भरें...
मिल जाये जब सब रंग, तो इक नया इन्द्रधनुष सजेगा....
इक नया आकाश मिलेगा

इक मुस्कान तुम्हारी...
इक मुस्कान हमारी ...
हो मेहरबान खुदा तो ये महफ़िल मैं खुशनुमा माहोल बनेगा ...
दुनिया को इक नया पैगाम मिलेगा

Saturday, July 24, 2010

सुलगती दुनिया..

ये झूठे वादों ये झूठी कसमों कि दुनिया...
ये चेहरे पे लगे झूठे नकाबों कि दुनिया॥
ना तेरी ना मेरी , ये ज़ुल्मों से भरी फरेबों कि दुनिया ....
ना रिश्तों कि ना रस्मों कि रिवायतों कि दुनिया, बस दौलत
और दौलत के भूखों कि दुनिया॥
चोरहों पे बिकते भूखे जिस्मों कि दुनिया....
पल-पल सुलगती ये हैवानो कि दुनिया॥
एक दूजे के खून कि प्यासी ये दुनिया....
बाजारों में बिकते हुए दीन और ईमान कि दुनिया॥
अपने हाथों अपनों को नीलाम करती हुई ये दुनिया...
बेबस और मजबूर गरीबी में गरीबों पे हसती हुई ये दुनिया॥
अपने ही हाथों से अपनों के घर जलाती हुई ये दुनिया....
झूठे सपनो और झूठे ख्वाबों में , कभी हसती तो कभी रोती हुई ये दुनिया॥






Friday, July 23, 2010

ये वक़्त...

कभी थे जिनकी नज़रों के नूर...
कभी थे जिनके दिल के सरूर...
आज बन गए उनके दिल के शूल...!!!
जुबान खामोश , पर आँखें हजारों सवाल करती हैं॥
क्या करें कहाँ ले जाएँ उन्हें???
छिपाए फिरते हैं इन नम आँखों को...कभी..
ना देखे कोई इन छलकती हुई आँखों को, इस लिए खुद को अंधेरों में रखते हैं
था कभी इस रूह इस दिल इस जिस्म से प्यार हमे , पर आज खुद को मिटटी के समान समझते हैं...
ये तो है सब किस्मत का खेल, अब क्या कहें सितारे हर पल एक से नहीं रहते...
धूप और छावों का ये खेल, दुःख और सुख का ये मेल आएगा चला जायेगा
पर बीते हुए वो सुनहरे पल वो शन ना लौटेंगे कभी....
रह जायेंगे कुछ पल हमारी भी यादों के यहाँ..सिमट जायेगा हर लम्हा
फिर ना होगी कोई दुआ कबूल तेरी, देखो हम ना फिर लौटें गे , ना लौटें गे कभी॥!!

Thursday, July 22, 2010

ये खौफ..

ना जाने वक़्त का तूफ़ान कब जाये ..
इस सुन्दर सी बगिया को वो कब उड़ा ले जाए..
क्यूँ हैरान और परेशान रहता है ये दिल..
क्यूँ खुद से ही इतने सवाल करता है ये दिल
क्यूँ तनहाइयों से डरता है ये दिल
क्यूँ तुझ से दूर जाने को डरता है ये दिल
क्यूँ तेरा हाथ थाम के फिर छोड़ने को डरता है ये दिल...
क्यूँ इस भीड़ में अकेले चलने से डरता है ये दिल
क्यूँ अपनी नज़रों से ओझल होते हुए देख डरता है ये दिल
क्यूँ ख्वाबों में भी मिल कर बिछड़ ने से डरता है ये दिल
यही इक सवाल यही इक उलझन लिए चुप-चाप धडकता है ये दिल
शायद यही कहना चाहता है ये दिल कि तुझसे बेपनाह मोहब्बत करता है ये दिल..!!!