Saturday, July 24, 2010

सुलगती दुनिया..

ये झूठे वादों ये झूठी कसमों कि दुनिया...
ये चेहरे पे लगे झूठे नकाबों कि दुनिया॥
ना तेरी ना मेरी , ये ज़ुल्मों से भरी फरेबों कि दुनिया ....
ना रिश्तों कि ना रस्मों कि रिवायतों कि दुनिया, बस दौलत
और दौलत के भूखों कि दुनिया॥
चोरहों पे बिकते भूखे जिस्मों कि दुनिया....
पल-पल सुलगती ये हैवानो कि दुनिया॥
एक दूजे के खून कि प्यासी ये दुनिया....
बाजारों में बिकते हुए दीन और ईमान कि दुनिया॥
अपने हाथों अपनों को नीलाम करती हुई ये दुनिया...
बेबस और मजबूर गरीबी में गरीबों पे हसती हुई ये दुनिया॥
अपने ही हाथों से अपनों के घर जलाती हुई ये दुनिया....
झूठे सपनो और झूठे ख्वाबों में , कभी हसती तो कभी रोती हुई ये दुनिया॥






3 comments:

Zeeshan said...

lagta hai bade hi ghusse me likha..
just kidding! sachhai likhi hai.

Unknown said...

very true!! bahut hi sunder tarike se duniya ko explain kar diya aapne.. good one!! :)

कमलेश खान सिंह डिसूजा said...

ना रिश्तों कि ना रस्मों कि न रिवायतों कि दुनिया.....

एक यथार्थपूर्ण सुन्दर रचना !!