Tuesday, November 2, 2010

ऐ ज़िन्दगी तुझे पा कर कर भी ...
ज़िन्दगी से हैरान , परेशां हूँ में...!!!
दुनिया कि चमक धमक में...मंजिलों को ढूँदती ...
कभी जाने तो कभी अनजाने में ...
दूसरों के अरमानो , दूसरों के खवाबों को रौंदती हुई ये ज़िन्दगी..!!!
अलग -अलग नजरिया है लोगों का...जीने का ज़िन्दगी...
कभी अपनों कि लाशों पे बनाती ये महलों कि ज़िन्दगी...
कभी दूसरों के कफ़न से खुद को सवारती और सजाती ये ज़िन्दगी....!!!
कभी अपनों के लिए ही घर से बेघर होती ..
टूटती और बिखरती ज़िन्दगी....
बस इक सौदा सा बन कर रह गयी ये ज़िनदगी...
एक हाथ दे और दूसरे हाथ ले ..बस यही रह गयी है ये ज़िन्दगी...!!!!

3 comments:

Unknown said...

Zindagi ke baare mein itni gehrayee se likha hai tumne....waah...

कमलेश खान सिंह डिसूजा said...

एक हाथ दे और दूसरे हाथ ले ..बस यही रह गयी है ये ज़िन्दगी....एक बहुत ही उम्दा रचना है आपकी !!
धन्यवाद :)

Sumit Rathore said...

lovely so nice,,great lines mani