Wednesday, January 12, 2011

अक्सर मेरे खवाबों के दवार पर खट-खटाता है कोई कोन है वो ?? कहाँ से आती है वो ???
कहाँ खो जाती है ??? यही ढूँढता हूँ हर वक़्त॥!!
सर से पाँव तक इक पहेली सी दिखती है वो
सियाह काली जुल्फों से बांध लेती है वो
अपने दो चंचल नयनों में मानो सागर कि गहरायी रखती है वो...
चले तो चारों तरफ पायल कि झंकारसुनाती वो...
बोले तो लगे दिल के तार छेड़ जाती है वो...
इक मीठी सी , इक धुंदली सी आशा दे जाती है वो...
खुद में इक जीने कि खवाइश जगा जाती है वो...
छूना चाहू गर उसे तो , छुई - मुई सी सिमट जाती है वो...
पलक झपकते ही मेरी आँखों से ओझल हो जाती है वो..!!!!

No comments: