Thursday, January 21, 2016

वक़्त





गौर से देखो ये चेहरा तुम्हे रुला देगा
वक़्त की गर्म- सर्द हवाओं को चीरती हुई ये लकीरें
आज कहानी सुनाती है इस ज़िन्दगी की
चाहता होगा ये भी कि बदल जाये ये वक़्त जो गुज़रता ही नहीं
सिर्फ एक चेहरा ही नहीं , हजारों – हजारों दर्दों से भरी दरारें भरना चाहता है वो
लेकिन दफ़न होता जा रहा है सीने  में वो दर्द जो थमता ही नहीं
दो निवाले ज़िन्दगी के बाकी हैं और चंद बूंदे सांसों की
अब क्या लगाव ,क्या मोहब्बत , रूह परेशान भटकती है
ढूँढती है खामोश सुकून भरे लम्हों को जहाँ पल भर चैन हो
अब तो छोड़ दिया है साथ इन हाथों ने जो थामे रखते थे हाथ अपनों का
सच है की सहारा जब खुद सहारा बन जाये तो फिर क्या ज़रूरत इन कांपते हाथों की
इन डगमगते क़दमों से अब नतेज़ न चल सकूंगा मैं
ज़माने के साथ साथ गुज़र गया वो वक़्त जो कभी ठहरा ही नहीं
रौशनी आँखों की अब अंधेरों में बदल गयी , देखना चाहूँ तो पलकें अब खुलती नहीं
हर दर्द इलाज शायद हो पर इस उम्र का कोई इलाज नहीं ये वक़्त का दस्तूर है रोके से भी रुकता नहीं


2 comments:

कमलेश खान सिंह डिसूजा said...

बेहद गहरी भाव और अभिव्यक्ति...लाजवाब शब्द रचना।

Mani Singh said...

धन्यवाद कमलेश जी